सूर्य उपासना का अनूठा लोकपर्व है छठ पूजा: आचार्य हिमांशु शुक्ल

आचार्य हिमांशु शुक्ल ने छठ पूजा के महत्व पर चर्चा की, सूर्य उपासना और पौराणिक कथाओं की जानकारी दी

नवंबर 5, 2024 - 17:25
नवंबर 5, 2024 - 17:25
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सूर्य उपासना का अनूठा लोकपर्व है छठ पूजा: आचार्य हिमांशु शुक्ल
सूर्य उपासना का अनूठा लोकपर्व है छठ पूजा: आचार्य हिमांशु शुक्ल

काशी: आचार्य हिमांशु शुक्ल ने छठ पूजा को सूर्य उपासना का अनूठा लोकपर्व बताते हुए इस पर्व के महत्व को उजागर किया। उन्होंने बताया कि छठ पूजा विशेष रूप से सूर्य देव और उनकी बहन छठी मईया की पूजा के लिए जानी जाती है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

आचार्य हिमांशु शुक्ल ने इस पवित्र पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाओं को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि महाभारत, विष्णु पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे धर्म ग्रंथों में छठ पूजा से संबंधित कई कथाएं वर्णित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी। साम्ब ने सच्चे मन से सूर्य देव की पूजा की और उसी पूजा के फलस्वरूप उन्हें कुष्ट रोग से मुक्ति मिली।

साम्ब की पूजा के बाद भगवान सूर्य ने उन्हें आशीर्वाद दिया और साम्ब ने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया। इनमें से ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर और बिहार के औरंगाबाद स्थित देवार्क सूर्य मंदिर प्रसिद्ध हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, तब देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। इस संकट में देव माता अदिति ने देवार्क सूर्य मंदिर पर तपस्या की। छठी मईया से वरदान प्राप्त कर अदिति ने संतान प्राप्ति की और कालांतर में आदित्य भगवान का अवतार हुआ। उनके आशीर्वाद से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की। तभी से छठ पूजा का महत्व बढ़ा और यह संतान सुख और परिवार की सुरक्षा के लिए की जाने लगी।

आचार्य शुक्ल ने आगे कहा कि एक और कथा के अनुसार महाभारत काल में कर्ण ने सूर्य देव की पूजा की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देता था और यही कारण था कि वह महान योद्धा बना। आज भी छठ पूजा के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य दान की कर्ण प्रणीत पद्धति प्रचलित है।

आचार्य हिमांशु शुक्ल के अनुसार, छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दृष्टिकोण है जो सूर्य देव से जुड़ी अनगिनत कथाओं, आदर्शों और बलिदानों का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से लोग न केवल सूर्य देव की पूजा करते हैं, बल्कि अपनी जीवन की सभी बाधाओं को पार कर उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।

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