रघुवंश दयाल सावंत की कल्पना शक्ति व परिदृश्य संयोजन अद्भुत
25 जुलाई को पुण्यतिथि पर - जन्म _24 मई1928 - मृत्यु_25 जुलाई1990
प्रतिष्ठित इतिहासकार एवं अवध के संस्कृति के विशेषज्ञ जानकार पद्मश्री योगेश प्रवीन जी के अपने अग्रज साहित्यकार कहानीकार ऐतिहासिक उपन्यासकार रघुवंश दयाल सावंत जी के बारे में विचार रघुवंश दयाल सावंत जी को कल्पना शक्ति एवं दृश्य संयोजन की कला में महारत हासिल थी इसी के चलते वह थोड़े से तथ्यों व प्रमाण के आधार पर ऐतिहासिक उपन्यास की रचना कर देते थे जिसे पढ़ कर पाठकों को वह पुराने तथ्य आंखों के सामने संजीव हो जाते थे।
प्रवीण जी का कहना था अवध का जो पुराना प्राचीन इतिहास अमिलता है वह या तो अंग्रेजी गजट में उपलब्ध है या उर्दू फारसी की लिपि में लिखित किताबो या लेसालों में मिलता है उस समय मुद्रण की सुचारू व्यवस्था नहीं थी। इसी के आधार व पूर्व लेखन के ऐतिहासिक संस्करणों के आधार पर सावंत जी अपने उपन्यास की रचना किया करते थे।
हम अपने सम्मानित पाठकों को अवगत कराते चले जैसे कि फिल्म मुग़ल-ए-आज़म अनारकली लैला मजनू क्रांति उमराव जान और हाल ही में या कुछ साल पहले रिलीज हुई बाजीराव मस्तानी पद्मावत आदि फिल्मों का मजमून ऐतिहासिक तथ्यों से मिलता जुलता हो सकता है लेकिन उनकी प्रमाणिकता को गारंटी नहीं दी जा सकती लेकिन मनोरंजन,सूचना और बीते काल के माहौल को स्मरण कराने के लिए ऐतिहासिक उपन्यास रची जाती हैं इनमें काफी हद तक सावन की कामयाब होते थे।उनकी लेखन क्षमता का एहसास करने के लिए उनके ऐतिहासिक उपन्यास रोली की लाज के कुछ अंश यहां प्रस्तुत कर रहे हैं_
"टुम बहुत अच्छा आदमी है इधर का आदमी टो बड़ा बदमाश है।"
"जिधर से हम लोग निकलटा है उधर वह उंगली उठाटा है।"
"इसलिए तो कहता है टुम अच्छा लोग हैं हमसे डोस्टी करेगा।"
"अंधेरी रात..मस्त हवा के झोंके और शराब के झोंक फिर सामने हुस्न की मलिका किसका दिल बेकरार ना हो।"
"कहीं पर चौपड़ बिछी हुई तो कहीं बटेरों या तीतरों की लड़ाई तो कहीं आले दर्ज की मुर्गे एक दूसरे पर झपटते हुए।"
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