शिविर में दण्डी सन्यासियों की धर्म सभा एवम् भंडारा

जैनुल आब्दीन
प्रयागराज।श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज के शिविर में दण्डी सन्यासियों की धर्म सभा एवम् एकादशी के उपलक्ष्य में फलाहारी भण्डारा का आयोजन हुआ। इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा में पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि “कृष्णे स्वधामोपगते धर्मज्ञानादिभि: सह" । भगवान् श्रीकृष्ण के धर्म, ज्ञानादि सहित अपने परमधाम चले जाने के पश्चात् कलियुग में अज्ञानान्धकार से अंधे लोगों के लिए यह श्रीमद्भागवत पुराण रूपी सूर्य जीवन के अन्धकार को नष्ट कर जीवन को प्रकाशित करने वाला है ।
“सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्मंतारानी च, वंशानुचरितनचेति पुराणं पञ्चलक्षणं" ।
पुराणों के पाँच विषयों का वर्णन है- (१) सृष्टि,(२) प्रलय,(३) सूर्यवंश और चन्द्रवंश का विवरण, (४) अलग-अलग काल के मनुओं का विवरण और (५) विस्तृत कथा श्रीमदभागवत महापुराण और विष्णु पुराण में इन पाँचों विषयों की पूर्ण रूप से चर्चा है, इसलिए ये दोनों ही पुराण पूर्ण-पुराण कहे गए हैं ।
“ऋग्यजुःसामाथर्वाख्या वेदाश्चत्वार उद्धृताः। इतिहासपुराणं च पञ्चमो वेद उच्यते” ॥
श्रीमद भागवत पुराण सभी शास्त्रों का सार है । जब वेदों के संकलन और महाभारत, पुराणों की रचना के बाद भी वेद व्यास शान्ति न मिली,तो उनके गुरु नारद मुनि ने उन्हें श्रीमद भागवत पुराण लिखने को प्रेरित किया। यह श्री वेदव्यासजी की आखिरी रचना है और इस कारण पूर्व के सारे रचनाओं का निचोड़ है । वेदव्यास जी का नाम “कृष्ण द्वैपायन” है। कृष्ण अर्थात श्याम वर्ण के और द्वैपायन अर्थात छोटे कद के या द्वीप में निवास करने वाले।
व्यासदेव स्वयं भगवान के शक्त्यावेश अवतार थे और आने वाले कलयुग का ध्यान कर उन्होंने वेदों को ४ भाग में विभक्त किया और शास्त्रों को लिखित रूप में संरक्षित किया।भगवान स्वयं शब्दात्मक स्वरुप में श्री मद्भागवत में विराजते हैं। इस अवसर पर विश्वगुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती,स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती,स्वामी नारद आश्रम,अभेदानन्द, सच्चिदानन्द तिवारी,अविनाश शुक्ला, सुनील शुक्ला,विनोद त्रिपाठी सहित सैकड़ों दण्डी सन्यासी एवम् श्रद्धालु उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने किया।
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