एक थे pandit हरिशंकर तिवारी!

डा अखंड प्रताप सिंह हेडिंग देखकर और मेरा नाम देखकर बहुतों को एक बारगी ये लग सकता है कि ये लेख शायद तिवारी जी से जुड़े नकारात्मक किस्सों के बारे में होगा. ऐसा मैं दावे के साथ इसलिए कह सकता हूं क्योंकि मैं भी उसी क्षेत्र का रहने वाला हूं जहां के तिवारी जी थे. बल्कि यूं कहूं कि हरिशंकर तिवारी के छात्र जीवन से लेकर 1996 तक जब तक मैं गोरखपुर में रहा, की उनसे जुड़ी हर घटना का मैं स्वयं साक्षी रहा हूं.

एक थे pandit हरिशंकर तिवारी!
एक थे pandit हरिशंकर तिवारी!

गोरखपुर जिले में मेरा गांव गगहा है और तिवारी जी का गांव टांडा है जो मेरे गांव से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर है. 1985 में तिवारी जी जिस चिल्लूपार से विधायक बने उसी क्षेत्र से मैं भी एक मतदाता था. यह चुनाव हरिशंकर तिवारी ने जेल में रहते हुए लड़ा था और उस समय संभवतः जेल से चुनाव लड़कर विधायक बनने वाले देश के वो पहले व्यक्ति थे. यह वो दौर था जब पूर्वांचल राजपूत और ब्राह्मण दो खेमों में बंट चुका था. ब्राह्मणों के सर्वमान्य नेता बनकर हरिशंकर तिवारी उभरे थे तो राजपूतों के रहनुमा वीरेंद्र प्रताप शाही बन चुके थे. आलम ये था कि वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्री बनने से पहले इन दोनों ग्रुपों के गैंगवार में आए दिन हत्याएं होती रहती थीं. जब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इन बाहुबलियों के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया जिससे तिवारी जी और शाही जी के साथ इन सबको जेल में जाना पड़ा.

जानकार बताते हैं, विश्वविद्यालय के जमाने में हरिशंकर तिवारी का एक क्षत्र राज्य था. पर इसी बीच राजपूत छात्रों की अगुवाई बलवंत सिंह करने लगे और तभी से इन दोनों गुटों में गैंगवार शुरू हुआ. लोग बताते हैं कि बलवंत सिंह की बड़ी शानदार पर्सनेलिटी थी और वो काफी दिलेर भी थे. गोरखपुर के प्रमुख मार्केट गोलघर में वो खुलेआम घूमते थे. देखते देखते उनका काफी दबदबा बनने लगा था, जिससे वो विरोधी ग्रुप के सीधे निशाने पर आ गए...और एक दिन गोलघर मार्केट में खुलेआम दिनदहाड़े बलवंत सिंह की हत्या कर दी गई. इसके बाद राजपूतों के नेता के तौर पर बड़ी तेज़ी से उभरने वाले तेज तर्रार छात्र नेता और नए नए विधायक चुने गए रविन्द्र सिंह की भी रेलवे स्टेशन पर हत्या कर दी गई. इस घटना के बाद तो पूर्वांचल जल उठा. जानकार बताते हैं कि रविन्द सिंह की हत्या के बाद वीरेंद्र प्रताप शाही ने राजपूतों के नेता के तौर पर विपक्षी खेमे को खत्म करने की कसम ली. फिर तो तिवारी शाही दोनों खेमों ने पूर्वांचल में खून की नदियां बहा दीं. उस दौर में हर व्यक्ति दहशत के साए में जी रहा था. मीडिया में किसी की हिम्मत नहीं होती थी इन दोनों बाहुबलियों के खिलाफ लिखने की. बाकी की कहानी तो सभी जानते हैं.

पर मैं बात कर रहा हूं इन दोनों बाहुबली राजनेताओं के मानवीय पक्ष के बारे में. क्षेत्र में दोनों जहां एक तरफ आतंक के पर्याय थे वहीं दोनों जरूरतमंदों के लिए बेहद मददगार. वो भी ऐसे कि तिवारी जी और शाही जी के पास उम्मीद से आया कोई व्यक्ति निराश होकर नहीं जाता था. संयोग से इन दोनों राजनेताओं के साथ मेरा तो बेहद सुखद अनुभव रहा. हमारे गांव, जो एक राजपूत बाहुल्य गांव है, के तीन चौथाई से ज्यादा वोट तो हरिशंकर तिवारी को ही मिलते थे. इन दोनों ने क्षेत्र के हजारों गरीब लड़कियों की शादी करवाई. सैकड़ों युवाओं को रोजगार भी दिया या दिलवाया. 

हरिशंकर तिवारी उत्तर प्रदेश सरकार में सालों तक लगातार मंत्री पद पर आसीन रहे. बाद में उन्होंने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस नाम से अपनी पार्टी भी बनाई.

हरिशंकर तिवारी के अंतिम दर्शन को बुधवार की सुबह से ही धर्मशाला स्थित तिवारी हाता पर समर्थकों का ताता लग गया. विभिन्न दलों के नेताओं ने उनके आवास जो गोरखपुर में हाता के नाम से मशहूर था, पहुंचकर श्रद्धांजलि दी. बड़ी संख्या में लोग बड़हलगंज पहुंच कर उनकी अंत्येष्टि में भी शामिल हुए. तिवारी जी तो अब इस दुनिया में रहे नहीं पर उनकी छाप और उनकी यादें तिवारी जी से जुड़े लोगों के दिलों में हमेशा बनी रहेगी.