माई लॉर्ड आरोपों के घेरे में , न्याय की देवी आंखों पर बंधी पट्टी खोलो
न्यायालय में किसी निर्णय पर असहमति उसी न्यायालय अथवा उससे बड़ी अदालत में तुरंत दे सकते हैं
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की : यह एतिहात जरूरी है इस बहर के लिए
मैं यह लेख पूरे होशो हवास में लिख रहा हूं लेकिन ना जाने क्योंघ् कलमकार राजनीतिक सामाजिक चिंतक जो कि विधायिका और कार्यपालिका के हर कदम पर पैनी नजर रखते हैं और उसके हर निर्णय पर खुलकर राय देते हैं यहां तक कि उसके निर्णय पर छींटाकशी करने से भी परहेज नहीं करते हैं उनको कटघरे में खड़ा करने का जज्बा दिखाने वाले सम्मानीय नागरिक न्यायपालिका के सामने गर्दन झुकाए दिखते हैं और उनके हर निर्णय पर अपनी मौन स्वीकृति प्रदान करते हैं अथवा उनके निर्णयों पर सहमति असहमति दिखाने का साहस नहीं दिखा पाते। जबकि हमारे संविधान में यह व्यवस्था है कि न्यायालय में किसी निर्णय पर असहमति उसी न्यायालय अथवा उससे बड़ी अदालत में तुरंत दे सकते हैं तो फिर काहे न्यायालय के निर्णय और कार्य पद्धति एवं कार्यकलापों पर सार्वजनिक मंचों पर चर्चा नहीं की जाती। एक कहावत है कि जहां दिया जलता है उसके नीचे सबसे ज्यादा अंधाकूप होता है।
वर्षों से देश की न्याय व्यवस्था के प्रति उपचार असंतोष उस समय सेऔर मुखर दिखने लगा है जब देश की सर्वोच्च अदालत ने मणिपुर नस्लिय हिंसा को संज्ञान में लिया है और विधायिका को चेतावनी देने का मूड बना रही है। मणिपुर की घटना को संज्ञान में तब लिया है जबकि उसके दरवाजे पर कोई प्रार्र्थी नहीं था यद्यपि उसके न्यायालय में 70000 से अधिक मामले लंबित हैं। यही नहीं इसी गुरुवार को ज्ञानवापी विवाद को तुरंत संज्ञान में लिया और शुक्रवार को उसका निर्णय भी दे दिया। ऐसा ही रवैया सर्वोच्च न्यायालय ने कश्मीर की 370 की धारा पर की गई अपील को स्वीकार करके विधायिका से टकराव की स्थिति पैदा की है। जबकि यह धारा हटाने की कार्यवाही संसद की रजामंदी के बाद पास हुई। न्यायपालिका चाहे अपने गुमान में रहे जनतंत्र में संसद ही सर्वोच्च होती है इसमें चुने गए प्रतिनिधि जनता द्वारा जनता के लिए चुने जाते हैं न्यायपालिका के कार्यकलापों की सुगबुगाहट लेने का सिलसिला शुरू किया तो देखा कि देश की न्याय व्यवस्था में छेद ही छेद है।
न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया भाई भतीजावाद परिवारवाद के आरोपों से ग्रस्त मिली। न्यायाधीशों की नियुक्ति में योग्यता सीनियरिटी पूर्व उपलब्धि या कमियों को नजर अंदाज किया जाता है। लोअर कोर्टों में तो भ्रष्टाचार सरेआम दिखता है कई बार न्यायधीश ने सुनवाई करते समय अपना आपा खो देते हैं खुलेआम सम्मानित अधिवक्ताओं को फटकार एवं धमकी देते हुए दिखते हैं और उसकी योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। ऐसा रवैया युवा अधिवक्ताओं के प्रति अधिक दिखाते हैं उनको हतोत्साहित करते हैं।इस समय वह भूल जाते हैं कि सभी अभिमन्यु नहीं होते हैं जो अपनी मां के गर्भ से चक्रव्यूह भेदन का मंत्र सीख कर आए। निरंतर अभ्यास ही इंसान को परफेक्ट बनाता है।
एक कहावत है प्रैक्टिस मेकस मैन परफेक्ट। न्याय अधिकारी अदालत अथवा अपने सम्मान को लेकर इतने चिंतित रहते हैं कि बड़े से बड़े प्रशासनिक अधिकारी को अदालत में ही कस्टडी भी दिलवा देते हैं अधिकतर में आरोप यह होता है कि न्यायालय के निर्देश के समय प्रशासनिक अधिकारी मौके पर नहीं पहुंच पाया था। यही अदालते वरिष्ठ अधिवक्ताओं अथवा लाल लश्कर रखने वाले अधिवक्ताओं की फौज के सामने मिमयाते नजर आती हैं फिर काहे के लिए अदालतों में सीसी कैमरे कोर्ट रूम में नहीं लगाए जाते हैं ? हाई कोर्ट में स्थिति और भी विचित्र है यहां देसी भाषा की जगह अंग्रेजी का बोलबाला है। वकीलों एवं जजों का चोंगा और पूरी अदालत की व्यवस्था न केवल राजशाही की याद दिलाती है बल्कि फिरंगी ओ की हुकूमत के दिनों की यादें भी ताजा करती हैं।
हमारी न्याय व्यवस्था का यह बदरंग चेहरा ही है कि मरहूम अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे अपराधियों को दंडित करने के लिए अदालतों को 30 30 40 40 वर्ष लग जाते हैं। राम जन्मभूमि काशी विश्वनाथ मंदिर कृष्ण जन्मभूमि मथुरा की बात को हल करने के लिए आजादी से पूर्व से लेकर आज तक अदालती निदान नहीं दे पाएंगे। अदालतों में निर्णय के लिए दूसरी तीसरी पीढ़ी तक इंतजार करना पड़ता है। लेकिन कहीं पर न्याय व्यवस्था में सुधार की कोई चर्चा नहीं होती काहे की हर आदमी को डर है कि अदालतें या न्याय अधिकारी इसे अपनी अव मानना ना मान लें। जिसके गिरफ्त में सैकड़ों कलमकार शायर राजनीतिक व सामाजिक चिंतक आज भी है। आम इंसान यही सोच रहा है कि कुछ फैसले ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए उनकी नजरों से कोई अपराधी बरी नहीं होता। यह लेख लिखते लिखते संसदिय समीति की सलाह आई है कि जिस तरह प्रशासनिक अधिकारिरियों संसदों विधायकों को अपनी सम्पत्ति का खुलासा करना होता है उसी तरह अब न्यायधीशों को भी अपनी सम्पत्ती का खुलासा करना पडे़गा
अखिल सावंत
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