नेपाल-भारत रंग महोत्सव में झलकी साझा सांस्कृतिक विरासत

नेपाल-भारत रंग महोत्सव में दोनों देशों के कलाकारों ने साझा सांस्कृतिक धरोहर को थिएटर और नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित किया।

फ़रवरी 14, 2025 - 22:32
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नेपाल-भारत रंग महोत्सव में झलकी साझा सांस्कृतिक विरासत
नेपाल-भारत रंग महोत्सव में झलकी साझा सांस्कृतिक विरासत

(शाश्वत तिवारी)

काठमांडू। नेपाल और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से आयोजित ‘नेपाल-भारत रंग महोत्सव’ का भव्य समापन हुआ। इस एक सप्ताह चले थिएटर फेस्टिवल में दोनों देशों के कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य, नाटक और संगीत के माध्यम से सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों को जीवंत किया।

भारतीय दूतावास के अनुसार, नेपाल संगीत एवं नाटक अकादमी द्वारा 5 से 12 फरवरी तक इस महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) ने सहयोग दिया। इस दौरान नेपाल और भारत की ओर से तीन-तीन शानदार थिएटर प्रस्तुतियां दी गईं, जो दर्शकों के लिए एक अनूठा अनुभव रहीं।

थिएटर प्रस्तुतियों ने बटोरी सराहना
नेपाल की ओर से सी. के. लाल द्वारा लिखित और सुनील पोखरेल निर्देशित नाटक ‘गच्छामि’ को विशेष रूप से सराहा गया। यह नाटक गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा को चित्रित करता है, जिसमें उन्होंने ज्ञान की खोज में सांसारिक जीवन त्याग दिया था।

वहीं, भारत की ओर से अजय कुमार द्वारा निर्देशित और विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ पर आधारित नाटक ‘माई री मैं कैसे कहूं’ ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ दिया। यह नाटक एक महिला की इच्छाओं, भावनाओं और सामाजिक मानदंडों के बीच के संघर्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।

नेताओं और राजनयिकों की उपस्थिति
इस महोत्सव का उद्घाटन 5 फरवरी को भारतीय राजदूत नवीन श्रीवास्तव ने किया, जबकि समापन समारोह में भारतीय दूतावास के उप प्रमुख प्रसन्न श्रीवास्तव उपस्थित रहे। नेपाल के संस्कृति मंत्री बद्री प्रसाद पांडे ने उद्घाटन और समापन दोनों अवसरों पर शिरकत की।

अपने संबोधन में मंत्री पांडे ने कहा कि ऐसे सांस्कृतिक आयोजन भारत और नेपाल के द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय दूतावास ने भी इस महोत्सव को कलात्मक एवं सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण अवसर बताया।

यह आयोजन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने और पारंपरिक कलाओं के संरक्षण में योगदान देने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ।

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