पेरिस ओलंपिक में भारत के खिलाड़ियों का बेहतरीन प्रदर्शन
गिरते हैं शह सवार मैदान ए जंग में, विजय अथवा जीत एक विराम है जबकि हर अथवा पराजय एक सीख है कुछ कर गुजरने का हौसला है। पराजय ही जुनून सीख युक्ति व नसीहत दे जाती है। ओलंपिक में अब तक जो भी भारतीय खिलाड़ियों ने किया है वह देशवासियों की उम्मीद के मुताबिक ना हो लेकिन भारतीय खिलाड़ी 6 कांस्य से एवं एक रजत पदक जीत चुके हैं। आठ इवेंट में चौथे स्थान पर आए हैं अर्थात एक अंक से 8 कांस्य पदक से देश वंचित रह चुका है।
किस्मत अगर मेहरबान होती तो यह आठ कांस्य से पदक भारत की झोली में होते। इस ओलंपिक में लगभग 200 के करीब देशों ने भाग लिया है। भारतीय खिलाड़ियों ने शूटिंग,बॉक्सिंग, कुश्ती,तीरंदाजी,हॉकी,टेबल टेनिस,बैडमिंटन में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह उपलब्धि देश के खिलाड़ियों को उत्साहित करने वाली है जिस देश में यह फलसफा कहा जाता हो कि खेलों के कूदोगे होगे खराब पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब।
आधुनिक ओलंपिक में 100 वर्ष के इतिहास में भारत ने हॉकी को छोड़कर किसी भी अन्य खेल में पदक नहीं प्राप्त किए हैं अपवाद स्वरूप 1960 में केडी जाधव दव को कुश्ती में कांस्य पदक मिला था मिल्खा सिंह और पीटी उषा को ओलंपिक में चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। हां पिछले तीन-चार ओलंपिक में भारत ने कुछ प्रमुख वह पदक जरूर प्राप्त की है जिसमें भाला फेंक,बॉक्सिंग, बैडमिंटन, भारोत्तोलन ,कुश्ती आदि हैं। ऐसा नहीं है कि भारत हर खेल में फिसड्डी है क्रिकेट के t20 विश्व चैंपियन है 50 रन का रनर रहा है ।बिलियर्ड्स का चैंपियन बरसों से है। शतरंज में हमारा कोई मुकाबला नहीं है।
इसके लिए खिलाड़ियों को खोजने के बजाय पूर्व सरकारी मानसिकता को दोषी ठहराया जा सकता है जिसमें सुरेश कलमाड़ी जैसे दोषी हैं जो खेलों के सहारे कमाई करते थे एवं स्टेटस पानी का जरिया बनाते थे आज भी अमित शाह के पुत्र जय शाह और प्रियंका गांधी के एडवाइजर राजीव शुक्ला जो कि भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद के बहनोई हैं वह बीसीसीआई के माध्यम से इसे पा रहे हैं। ललित मोदी ने किया जो देश छोड़कर भाग गया और भगोड़ा साबित हुआ खैर अब किसी को खोजने के बजाय नई शुरुआत हम सब करें।
(अखिल सावंत)
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