भोजशाला: अम्बिका-वाग्देवी की प्रतिमा और अभिलेख

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर भोजशाला धार (मध्य प्रदेश) सन् 1875 में जब इमारत का जीर्णोद्धार किया जा रहा था तब वहाँ अंबिका और सरस्वती की दो प्रतिमाएँ पाई गई थीं। इनके पाए जाने के कुछ ही समय बाद एक मूर्तियों को विलियम किनकैड (भारतीय सिविल सर्विस) के ध्यान में लाया गया, जो 1866 से मध्य भारत में काम कर रहे थे। वह 1886 में भारत से लौटने पर एक मूर्ति को ब्रिटेन ले गये, और 1891 में इसे ब्रिटिश संग्रहालय के ऑगस्टस वोलास्टन फ्रैंक्स (1826-1897) के पास जमा कर दिया।

अप्रैल 21, 2025 - 12:15
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भोजशाला: अम्बिका-वाग्देवी की प्रतिमा और अभिलेख
भोजशाला: अम्बिका-वाग्देवी की प्रतिमा और अभिलेख

जब किनकैड की 1909 में मृत्यु हुई, तो ये ब्रिटिश संग्रहालय का हिस्सा बन गई। ऐसा इन्टरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं से ज्ञात होता है। दूसरी मूर्ति कब और कैसे ब्रिटिश संग्रहालय में पहुँची इसकी विस्तृत जानकारी नहीं है। उस प्रथम प्रतिमा के विषय में लिखा है कि- ‘‘धार की अंबिका मूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन के संग्रह में जैन देवी अंबिका की उच्च नक्काशी वाली पाषाण की प्रतिमा है।’’ दूसरी प्रतिमा वास्तविक वाग्देवी या सरस्वती की मूर्ति

देवी अंबिका के सिर पर सुन्दर नक्कसीदार मणि-मुकुट है, उनके बाल एक तरफ बंधे हुए हैं। वितान के परिकर में एक ओर की माल्यवाहक गगनचरी स्पष्ट है, दूसरी ओर की खण्डित व अप्राप्त है। इसे कर्णोत्पल, हीक्कासूत्र, हारयष्टि, कण्ठिका और स्तनमाला धारण किये हुए दर्शाया गया है। कटि में त्रिस्तरीय कटिमेखला, घर्घरमल्लिका आदि आभारण सुशोभित हैं। अम्बिका देवी की चार भुजाओं में से दो के अग्रभाग गायब हैं; किन्तु उनकी भुजाओं पर सुदर भुजबंध सुशोभित हैं। ऊपर को किये हुए एक हाथ में हाथी का अंकुश है, दूसरे हाथ का आयुध टूटा हुआ है। कलाइयों में दो-दो मोटे-मोटे चूडे़ शिल्पित किये गए हैं।

यह देवी एक सामान्य पादपीठी पर द्विभंगासन में खड़ी है, पैरों में भी चार-चार पैजनियाँ हैं। बायीं ओर अम्बिका का वाहन सिंह निर्मित है, जिसके ऊपर एक बालक या बालिका बैठी है, जो देवी की ओर निहार रही है और एक हाथ ऊपर को किये हुए है। दायीं ओर एक बालक कुछ पीछे को झुका सा खड़ा है, मानो वह भी उच्च दृष्टि करके माँ को निरख रहा हो, उसके एक हाथ में मातुलिंग फल है, दूसरा भग्न है। बालक के पीछे एक दाढ़ी वाले ऋषि हैं, ये मुकुटबद्ध हैं और अन्य आभारण भी धारण किये हुए हैं। इस अम्बिका देवी के पादपीठ पर अभिलेख है जो बहुत महत्वपूर्ण है। अभिलेख का पाठ इस प्रकार है-

‘‘ओं।। श्रीमद्भोजनरेंद्रचंद्रनगरी विद्याधरी धर्म्मधी यो रग नामस्मरणं ...... खलु सुखप्रस्थापनं।
या धाराः वाग्देवी प्रथम विधायजननी, पस्चाज्जिनानात्रयीमम्बा. नित्यफलाधिकां वररुचिः मूर्तिं सुभा नि
र्म्ममे इति सुभंमस्तु सुत्रधार सहिस्सुतमणथलेण घटितं।। विज्ञानिक सिवदेवेन लिखितमिति।
संवत् 1091’’


अर्थात्-‘‘संवत् 1091 में श्रीमद्भोज के चंद्रनगरी धारा में विद्याधरी जैन धर्म को धारण करने वाली जिनके नाम स्मरण से सुख की प्रस्थापना होती है, अज्ञानता को हटाने के लिए हैं, वररुची ने पहले वागदेवी माता और बाद में तीन जिनों का निर्माण करवाकर अम्बा की इस सुंदर छवि को बनवाया, जो हमेशा प्रचुर मात्रा में फल प्रदान करने वाली है, ये शुभ और कल्याणकारी हों। इसे सूत्रधार सहिर के पुत्र मणथल ने तराशा था है। यह लेख विशेष दक्ष शिवदेव द्वारा लिखा गया।’’

शिलालेख नागरी लिपी में लिखा है और संस्कृत भाषा में संरचित है। इसमें वररुचि द्वारा तीन जैन तीर्थंकरों समेत सरस्वती प्रतिमा दान करने के बाद अंबिका प्रतिमा के निर्माण का उल्लेख किया गया है। यह वररुचि कौन थे, इस बारे में बताया गया है कि वह वास्तव में जैन विद्वान् धनपाल थे, जिन्होंने 11वीं शताब्दी में राजा भोज के दरबार में एक प्रमुख किरदार निभाया था। वररुचि ने प्राकृत व्याकरण का ‘‘प्राकृत प्रकाश’’ नामक ग्रन्थ भी लिखा है।

समीक्षा- इस प्रतिमा को ही प्रायः वाग्देवी की मूर्ति प्रचारित किया जाता रहा है, जबकि वाग्देवी की प्रतिमा अन्य है, जिसका परिचय अलग से लिखा जायगा। प्रस्तुत प्रतिमा में अभिलेख बहुत बड़ा प्रमाण है, कुछ लोगों ने पूर्वाग्रही होकर अभिलेख का पाठ भी गलत किया है, किन्तु इसमें टंकित अक्षर अपनी कहानी स्वयं कहते हैं, उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।

अम्बिका 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन देवी है तथा अम्बिका की स्वतंत्र रूप से भी भारत में सैकड़ों प्रतिमाएँ हैं। अम्बिका की अधिकतर मूर्तियाँ ललितासन में बैठीं हुई हैं, यह प्रतिमा द्विभंगासन में खड़ी हुई है। इससे साम्य रखने वाली अम्बिका की तीन अन्य प्रतिमाओं का उल्लेख हम यहाँ करते हैं।

एक- प्रयाग संग्रहालय में अम्बिका प्रतिमा, दूसरी- सीहोर की अम्बिका प्रतिमा और तीसरी- कलुगुमलै तमिलनाडु की अम्बिका प्रतिमा। इन तीनों में देवी का वाहन सिंह है, सीहोर और प्रयाग की प्रतिमा के सिंह पर बालक बैठा है, तमिलनाडु की प्रतिमा के सिंह के पास दो बालक खड़े हैं। सीहोर और तमिलनाडु की अम्बिका के निकट में एक युवती भी खड़ी है। ये सभी विशेषताएँ धार भोजशाला की प्रतिमा में भी हैं, अतः भोजशाला की यह प्रतिमा वाग्देवी नहीं अपितु बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासनदेवी अम्बिका यक्षी ही है।

अम्बिका देवी के मूर्त्यंकन में इनके पूर्वजन्म की विशिष्ट घटनाओं को दर्शाये जाने की परम्परा है। श्वेतांबर परंपरा के अनुसार अम्बिका गुजरात में एक पत्नी और दो बच्चों की माँ है। उसका पति उसे घर से निकाल देता है, क्योंकि वह एक जैन साधु को आहार देती है। वह अपने बच्चों के साथ पास के जंगल में चली जाती है और एक सूखे आम के पेड़ के नीचे बस जाती है। लेकिन आम का पेड़ उन्हें फल देता है और एक सूखी झील पानी से भर जाती है, इसलिए वे जीवित रहते हैं। जब उसका पश्चाताप करने वाला पति उन्हें खोजने आता है, तो वह गलत समझती है और अपने बेटों के साथ एक कुएँ में कूदकर उससे बच निकलती है। वह नेमिनाथ की यक्षी के रूप में पुनर्जन्म लेती है और उसका पति उसके सिंह वाहन के रूप में पुनर्जन्म लेता है। यह विवरण अंबिकादेवी-कल्प में है।

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