अटल जी और मालवीय जी का योगदान  के आगे क्रिसमस की धूमधाम फीकी

25 दिसंबर को भारत में मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेई की जयंती मनाई जाती है, जिन्होंने स्वतंत्रता, शिक्षा और नेतृत्व में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दिन को क्रिसमस के रूप में भी मनाया जाता है, जो भारतीय समाज की विविधता और धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है।

दिसंबर 24, 2024 - 21:30
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अटल जी और मालवीय जी का योगदान  के आगे क्रिसमस की धूमधाम फीकी
अटल जी और मालवीय जी का योगदान  के आगे क्रिसमस की धूमधाम फीकी
हमारी समझ से परे है की महान सपूतों की जयंती मनाना कट्टरवादी सोच रखने वाले और दूसरे का बर्थडे मनाना मॉडर्नाइज एडवांस और सेकुलर है शायद इसीलिए 25 दिसंबर को भारत माता के दो महान सपूतों की जयंती है जिन्होंने भारत की आजादी नवनिर्माण शिक्षा सम्मान एवं सुरक्षा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन दोनों महान विभूतियों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है जिनमें से एक की इस बार शतायु मना रहे हैं जबकि दूसरे महात्मा गांधी बड़े भाई के रूप में मानते थे जी हां हम बात कर रहे हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय के बारे में जो कि कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष नियुक्त हुए और उनके नेतृत्व में अंग्रेजी राज्य से मुक्ति के लिए कई आंदोलन चले गए उसे दौरान उन्होंने अनुभव किया कि वर्तमान व भावी पीढ़ियां में बिना शिक्षा के कुशल नेतृत्व का समाज की रचना नहीं हो सकती।
शिक्षा का स्वरूप देसी भाषा में होना चाहिए इसके लिए एक विश्वविद्यालय की कल्पना उन्होंने की। उनके सामने समस्या थी संसाधनों का अभाव, इसलिए उन्होंने राजा से रंक तक से धन एकत्रित करने का निश्चय की काशी नरेश ने तो उन्हें उतनी भूमि दान की  जितना वह दौड़ सकते थे निजाम हैदराबाद में तो अपनी जूती का चंदा दिया जिससे उन्हें नीलाम करके धन अर्जित किया गया।
दूसरे महान सपूत थे अटल बिहारी वाजपेई जिनके दल की वर्तमान समय में सरकार है। 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेई की सभी वर्षगांठ मना रहे हैं। हिंदी के प्रकार वक्त कई विद्वान हासिल जवाबी की क्षमता रखने वाले उनके विरोधी भी उनकी नेतृत्व क्षमता का सम्मान करते थे। तीन बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले शांतिप्रिय देश की पहचान रखने वाले भारत में पोखरण विस्फोट कराकर विश्व को एहसास दिला दिया कि उसकी शांति का आशय उनके कायरता ना समझी जाए उनके नेतृत्व में कारगिल में पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को धूल चटाई गई। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी भाषा में प्रथम भारतीय वक्ता थे।

25 दिसंबर को प्रभु यीशु का भी जन्मदिन है जिसे लोग क्रिसमस डे के रूप में मनाते हैं। भारतीय समाज बताता है कि अपने देशवासी जाते है लेकिन क्रिसमस डे को याद रखना है उसे मनाना ग्लैमर सभ्य व सेकुलर समाज का प्रमाण मानते है। शाहरुख और नगरों में तो क्रिसमस डे की कहानी 10 15 दिन पहले ही शुरू हो गई है। बहुसंख्यक किसे मनाने के लिए वेस्टर्न स्टाइल को अपनाते हैं केक पेस्ट्री कहते हैं घरों को कैंडल लाइट से सजाते हैं। गिरजा घर भी जाते हैं। यहां तक जो मुस्लिम समाज होली के रंग व कांवरियों के भजन से परहेज बनता है वह भी क्रिसमस डे को बहुत जोर शोर से मानता है अलबत्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने से जरूर परहेज पर रखता है वह अटल जी के कार्यकाल को भी मोदी जी के समान काले अध्याय के रूप में याद करता है।
(संजय सैनी)

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