अपोलोमेडिक्स ने लिवर डोनेशन से जुड़े मिथकों को तोड़ते हुए जागरूकता अभियान चलाया
वर्ल्ड लिवर डे पर अपोलोमेडिक्स लखनऊ ने लिवर डोनेशन की जागरूकता बढ़ाने और भ्रांतियों को तोड़ने पर जोर दिया

(आर. एल. पाण्डेय)
हर साल 30 हज़ार को जरूरत, केवल 3 हज़ार को मिलता है लिवर
कार्यक्रम में बताया गया कि भारत में हर साल 25,000 से 30,000 मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन केवल 3,000 को ही अंग मिल पाता है। इसमें भी मात्र 10% ट्रांसप्लांट कैडेवेरिक डोनर से संभव होते हैं, जो कि अंगदान की गंभीर कमी को दर्शाता है।
महिलाओं का अहम योगदान
कार्यक्रम के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट में पत्नियाँ और बेटियाँ प्रमुख डोनर के रूप में सामने आती हैं। यह दर्शाता है कि महिलाएं अंगदान के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
लिवर ट्रांसप्लांट पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी
डॉ. आशीष मिश्रा, सीनियर कंसल्टेंट एवं हेड – लिवर ट्रांसप्लांट, ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट एक सुरक्षित प्रक्रिया है। लिवर कुछ ही हफ्तों में दोबारा विकसित हो जाता है, जिससे डोनर की सेहत पर कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं पड़ता।
उन्होंने कहा, “डोनर एक महीने में सामान्य दिनचर्या में लौट सकता है, जबकि मरीज को लगभग तीन महीने का समय लगता है।”
लखनऊ में किफायती और सफल ट्रांसप्लांट
डॉ. मयंक सोमानी, एमडी एंड सीईओ, ने जानकारी दी कि अब तक 25 से अधिक लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक हो चुके हैं, जिनमें 23 लिविंग डोनर और 2 कैडेवेरिक डोनर से हैं।
उन्होंने कहा, “दिल्ली, मुंबई या हैदराबाद जाने की तुलना में लखनऊ में यह प्रक्रिया किफायती है और अतिरिक्त खर्च से राहत देती है।”
शासन और अस्पतालों में बेहतर समन्वय की जरूरत
डॉ. मिश्रा ने बताया कि उत्तर प्रदेश में अंगदान की दर अन्य राज्यों की तुलना में कम है। इस अंतर को मिटाने के लिए सरकार और निजी अस्पतालों के बीच बेहतर समन्वय और जनजागरूकता की आवश्यकता है।
वर्ल्ड लिवर डे पर अपोलोमेडिक्स का यह प्रयास न सिर्फ अंगदान को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज में डोनेशन से जुड़े डर और भ्रांतियों को भी खत्म करता है। सुरक्षित, किफायती और विशेषज्ञता से परिपूर्ण लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा लखनऊ में उपलब्ध कराकर अपोलोमेडिक्स ने एक सकारात्मक मिसाल पेश की है।
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