हमेशा सज्जन और विद्वान् की संगति करना चाहिए -आचार्य उदारसागर
(डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर) इन्दौर। हमेशा सज्जन और विद्वान् की संगति करना चाहिए, उसके पास बैठना चाहिए, वार्तालाप करना चाहिए, उसके पास जाओगे तो कुछ न कुछ आपको सीखने को मिलेगा। ‘विद्वान् के पास मिलेंगी दो दो बातें और मूर्ख के पास मिलेंगी दो दो लातें।’
मूर्ख के पास कभी अच्छी बात करोगे तो उसे वह विपरीत ही लगेगी और वह लड़ाई-झगड़े पर उतर आयेगा। ये विचार 18 मई को पंचबालयति मंदिर में एक कार्यक्रम अपना प्रवचन देते हुए आचार्य श्री उदारसागर जी मुनि महाराज ने व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा मंत्रों में बहुत शक्ति होती है, उन्हीं के अवलम्बन से तो पत्थर को परमेश्वर बनाते हैं। मंत्रों के द्वारा मूर्ति में गुणों का आरोपण करने से वह जगत्पूज्य बन जाती है।
श्री दिगम्बर जैन पंचबालयती मंदिर एवं संस्कारसागर के ब्र. जिनेश मलैया द्वारा आयोजित प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री गुलाबचंद पुष्प जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर 18 एवं 19 मई द्विदिवसीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। 18 मई को प्रातःकालीन प्रथम सत्र में ‘‘प्रतिष्ठा विधि में यंत्र और मंत्रों का वैशिष्ठ्य’’ विषय पर डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर ने मुख्य वक्ता के रूप में शोध आलेख प्रस्तुत किया। इससे पूर्व उदासीन श्राविका आश्रम की दो बहिनों ने पुष्प जी के प्रति अपने संस्मरण रखे। सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. अनुपम जैन ने कहा कि जिसका जो विषय है, जिसकी जो विशेषज्ञता है, वही उस पर विशेष प्रकाश डाल सकता है।
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में एक विद्वान् ने तो यहाँ तक कह दिया कि ‘जो पुरानी मूर्तियाँ पूज्य हों उन्हीं को बचाना चाहिए, शेष सब मूर्तियाँ नष्ट कर देना चाहिए।’ यह उनकी नासमझी है। आपने पुष्पजी के वात्सल्यपूर्ण व्यवहार का उल्लेख भी किया। संगोष्ठी के संयोजक पं. विनोद जैन, रजवांस थे, सत्र संचालक ब्रह्मचारी जयकुमार निशांत ने किया। आभार पं. सुरेश जैन मारौरा ने माना। सत्र के उपरान्त आचार्यश्री उदारसागर जी के संघस्थ मुनिवर के प्रवचन हुए, उपरान्त आचार्यश्री ने संबोधित किया।
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