अध्यापिकाएं दूसरे सरकारी विद्यालयों के लिए बनेगी नजीर

मई 11, 2024 - 12:17
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अध्यापिकाएं दूसरे सरकारी विद्यालयों के लिए बनेगी नजीर
अध्यापिकाएं दूसरे सरकारी विद्यालयों के लिए बनेगी नजीर

विगत दिनों एक सुखद एहसास हुआ जब राजकीय बालिका इंटर कॉलेज छोटी जुबली की दो अध्यापिकाएं (डॉ० आरती, प्रवक्ता शिक्षा शास्त्र एवं डॉ रूचिता सिंह प्रवक्ता जीव विज्ञान) रिवर बैंक कॉलोनी में घर घर जाकर अभिभावकों से अपनी बच्चियों को जुबली कॉलेज में दाखिले के लिए आग्रह कर रही थी। विद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं फीस अनुभवी शिक्षकों की योग्यता का बखान करते हुए गुणवत्ता वाली शिक्षा उनकी लड़कियों को प्रदान करने की गारंटी दे रही थी। गौर तरफ है नबीउल्लाह रोड सिटी स्टेशन के पास चल रहा गर्ल्स कॉलेज प्रदेश सरकार द्वारा संचालित है इस विद्यालय में शिक्षा के माध्यम हिंदी व अंग्रेजी भाषा अब दोनों है।

पिछले दो ढाई दशक से शहर में नीचे बेसिक एवं माध्यमिक स्कूलों की बहार आई है तब से सरकार द्वारा वित्त पोषित विद्यालयों के अंदर की रौनक गुर्जर सी गई है कभी जिन विद्यालयों में एक-एक कक्षाएं 80 90 छात्रों से भरी रहती थी छात्र-छात्राओं को दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा का सामना करना पड़ता था आज वहां छात्र-छात्राओं का टोटा लगा हुआ है और दाखिला भी केवल वही बच्चे लेते हैं जिनकी माली हालत बहुत खराब होती है एवं बच्चों के घर की शैक्षिक पृष्ठभूमि बहुत ज्यादा नहीं होती जबकि विद्यालयों की शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता अनुभव एवं क्षमता निजी स्कूलों के शिक्षकों की तुलना में काफी बेहतर होती है। लेकिन इसके बावजूद भी विद्यालय में छात्रों की संख्या दो दर्जन से अधिक नहीं होती। 

यह कहानी तमाम विद्यालयों की है जबकि विद्यालयों में बड़े-बड़े कमरे बिजली पंखा बड़ा परिसर अच्छे फर्नीचर पुस्तकालय एवं जल व्यवस्था व प्रसारण की सुविधा है। विद्यालय में छात्राओं की सुरक्षा का व्यापक प्रबंध होता है विद्यालयों की सबसे बड़ी खूबी है कि उनके पास विद्यालयों की छात्र-छात्राओं की लंबी चौड़ी उपलब्धियां के लंबे-लंबे इतिहास है। हर विद्यालय से अनगिनत प्रशासनिक शैक्षिक राजनीतिक एवं चिकित्सा क्षेत्र में उपलब्धि के किस्से होते हैं। उच्च व मध्यम वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजना अपने स्टेटस के अनुकूल नहीं मानते।

इन विद्यालय को देखकर यह सपना सा लगता है। अंग्रेजी का निजी स्कूलों के प्रचार तंत्र तथा अभिभावकों के अंग्रेजी शिक्षा के चश्मे के कारण सरकारी लापरवाही व समाज की उदासीनता के चलते इन विद्यालयों की रौनक गायब हो गई है जिसके लिए शिक्षक भी कम दोषी नहीं है शैक्षिक कर्तव्य के बचाएं उन्हें वेतन ज्यादा आकर्षित करने लगा अपनी उपस्थिति दर्ज करना ही उनके कर्तव्य का मापदंड हो गया।

विद्यालय की पूर्व छात्र विद्यालय की दैनिक स्थिति देखकर बेचैन होते हैं यही नहीं शिक्षकों को भी विद्यालय के अंदर सन्नाटा अच्छा नहीं लगता इस सत्र में एक मशाल की शुरुआत छोटी चुकी की शिक्षिकाओं ने की है अभी अभी आंखों की घर-घर जाएगी अभिभावकों को अपने बच्चों को विद्यालय बेचने को विवश करेंगे जहां उनके बच्चों को न्यूनतम फीस में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुविधा खेल सुरक्षा सरकार द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है इसीलिए लगता है छोटी जुबली की शिक्षिकाओं का अभिभावकों के द्वार पर पहुंचना दूसरे सरकार द्वारा वित्त पोषित विद्यालयों के लिए नजीर बनेगा।

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