जड़ों से उखड़े वृक्षों पर फूल नहीं खिलते: डाॅ.वी.के.बाजपेयी

डाॅ.राम मनोहर लोहिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अल्लीपुर हरदोई में शिक्षाशास्त्र विभाग के तत्वावधान में " भारतीय ज्ञान परम्परा के सन्दर्भ में एकात्म मानववादः एक परिचर्चा " बिषय पर संगोष्ठी  का आयोजन किया

Sep 25, 2023 - 16:21
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जड़ों से उखड़े वृक्षों पर फूल नहीं खिलते: डाॅ.वी.के.बाजपेयी
Ram Manohar Lohia Post Graduate College

आर एल पाण्डेय

लखनऊ। डाॅ.राम मनोहर लोहिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अल्लीपुर हरदोई में शिक्षाशास्त्र विभाग के तत्वावधान में " भारतीय ज्ञान परम्परा के सन्दर्भ में एकात्म मानववादः एक परिचर्चा " बिषय पर संगोष्ठी  का आयोजन किया गया । मुख्य अतिथि डाॅ.वी.के.बाजपेयी अपने उद्वोधन मे कहा कि भारत सारी दुनिया में ज्ञान और दर्शन के लिए प्रसिद्ध रहा हैं। ज्ञान यहाँ पवित्र विषय रहा है। ज्ञान से सभी रहस्यों का अनावरण होता है। ज्ञान से धर्म सधता है। ज्ञान से अर्थ, काम और मोक्ष मिलते हैं। हिन्दू ज्ञान अभीप्सु राष्ट्रीयता हैं। जड़ों से उखड़े वृक्षों पर फूल नहीं खिलते। पक्षी ऐसे वृक्षों पर गीत नहीं गाते। यूजीसी ने नई शिक्षा नीति-2020 के अनुसरण में भारत की ज्ञान परंपरा को छात्रों अध्यापकों के लिए मार्गदर्शी बताया है। भारत को मूल से जोड़ने का कार्यक्रम बनाया है। ज्ञान का लक्ष्य सूचना मिली पाना ही नहीं होता। ज्ञान, विज्ञान और दर्शन में विश्व कल्याण की प्रतिभूति है ।

प्राचीन भारतीय कला के साक्ष्य ऋग्वेद में है। संगीत के सात सुरों की चर्चा है। सामवेद ज्ञान गान है। यजुर्वेद में भी छंद विधान है। अथर्ववेद में भरा पूरा संसार है।  गीता  में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान परंपरा बताई, `यह प्राचीन ज्ञान मैंने विवस्वान को बताया था। विवस्वान ने मनु को। मनु ने इक्ष्वाकु को बताया था। परंपरा से यही ज्ञान ऋषि जानते आए हैं। काल प्रवाह में यह ज्ञान नष्ट हो गया। हे अर्जुन, वही पुरातन ज्ञान मैं तुमको बता रहा हूँ।' भारतीय ज्ञान परंपरा में लोकहित के सभी विषय सम्मिलित है।

संगोष्ठी के मुख्यवक्ता तथा विद्या भारती उच्च शिक्ष संस्थान के उपाध्यक्ष डाॅ.शीर्षेन्दु शील"विपिन" ने अपने वक्तव्य मे कहा कि  एकात्म मानववाद के प्रणेता ,प्रखर राष्ट्रवादी,हमारे मार्गदर्शक पं.दीन दयाल उपाध्याय जी की कृतत्व पाथेय हम सबके लिये अनुकरणीय है । भारत मे वैदिक काल ज्ञान दर्शन का अरुणोदय काल है। जिज्ञासा और प्रश्न सशक्त ज्ञान उपकरण हैं। ज्ञान दर्शन की यही परंपरा ऋग्वेद सहित चार वैदिक संहिताओं में विश्व की पहली ज्ञान सारिणी है। फिर उत्तर वैदिक काल में उपनिषद दर्शन है। फिर 6 प्राचीन दर्शनों में जिज्ञासा व तर्क के साथ सत्य दर्शन है। यही ज्ञान परंपरा बुद्ध व जैन दर्शनों में सम्मानीय है। ज्ञान प्रकट करने का प्रथम उपकरण है वाणी। वाणी का अनुशासन व्याकरण है। ज्ञान की इसी परंपरा में पाणिनि ने दुनिया का पहला व्याकरण लिखा है। इसके पहले यास्क वैदिक भाषा के अनुशासन पर निरुक्त लिखते हैं। पतंजलि योगसूत्र व भाषा अनुशासन लिखते हैं। योग विज्ञान अंतरराष्ट्रीय है। कौटिल्य ने दुनिया का पहला अर्थशास्त्र लिखा है। आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र लिखा। भरतमुनि ने पहला नाट्यशास्त्र लिखा। इसी ज्ञान परंपरा में चरक और सुश्रुत संहिताएं आयुर्विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हुईं ।

पाणिनि, पतंजलि, कौटिल्य, वात्स्यायन, भरतमुनि, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर आदि सभी विद्वान अपने पूर्ववर्ती आचार्यों का उल्लेख करते हैं। वे अपने कथन को प्राचीन ज्ञान परंपरा से जोड़ते हैं। विज्ञान के विकास के लिए गणित का विशेष महत्व होता है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ने शून्य के अंक का अविष्कार भारतीय ज्ञान परम्परा की ही  स्वीकार किया । शून्य और शून्य के स्थानगत मूल्यों की जानकारी वैदिक काल में थी। विवाह संस्था का जन्म वैदिक काल में ही हुआ। प्राचीन काल में गीत, संगीत, चित्रकला और स्थापत्य सहित सभी ज्ञान अनुशासन फल फूल रहे थे। *सम्पूर्ण विश्व मे एक मात्र भारतीय ज्ञान परम्परा ही विश्व बन्धुत्व और बसुधैव कुटुम्ब की भावना को पोषण और अभिसिंचन करने में पूर्ण समर्थ है ।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डाॅ. एस.के. पाण्डेय ने कहा कि ब्रिटिश सत्ता के समय भारतीय ज्ञान परंपरा पर सुनियोजित आक्रमण हुए। पश्चिमी ज्ञान और सभ्यता का प्रभाव बढ़ा। यहाँ के विद्यालयों में पश्चिम की प्रशंसा और भारतीय ज्ञान को कमतर पढ़ाया जाने लगा। इतिहास का विरूपण हुआ। वेदों को जानवर चराने वालों के गीत कहा गया।  ब्रिटिश विद्वानों व उनके समर्थक भारतवासी विद्वानों ने दावा किया कि अंग्रेजी राज के पहले हम भारतवासी एक राष्ट्र नहीं थे। भारत को अंग्रेजों ने ही राष्ट्र बनाया है। गाँधी जी ने इसका खंडन किया है। ब्रिटिश सत्ता भारत को असभ्य बता रही थी। लेकिन इसके हजारों वर्ष पहले वैदिक काल में सभा थी,समितियां थीं, राजव्यवस्था थी। राजा का निर्वाचन होता था। हिन्दू ज्ञान, विज्ञान व दर्शन से समृद्ध थे। आश्रमों में दर्शन, गणित व ज्योतिष के अध्ययन थे।

संगोष्ठी का संचालन डाॅ. नवीन शुक्ला ने किया ।आभार ज्ञापन डाॅ. सुबोध कुमार ने किया । इस अवसर  आनन्द विशारद, पारुल गुप्ता, सुमन कुशवाहा,सौरभ कुमार ,शिवम शुक्ला, संजय श्रीवास्तव, संजीव अस्थाना,अनूप सिंह, नीरज शुक्ला,हरिश्चंद्र वर्मा आदि के साथ सभी छात्र व छात्राओ ने सक्रिय सहभागिता की।

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