लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ संस्कृत महोत्सव का शुभारम्भ

संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत महोत्सव का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया।

अगस्त 17, 2024 - 12:31
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लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ संस्कृत महोत्सव का शुभारम्भ
लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ संस्कृत महोत्सव का शुभारम्भ

लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग में संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत महोत्सव का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रामसुमेर यादव थे।

कला संकाय के डीन तथा संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग के पदेन विभागाध्यक्ष प्रो. अरविंद मोहन ने संस्कृत की समसामयिक उपयोगिता पर अध्यक्षीय भाषण दिया। उन्होंने आग्रह किया कि आज अर्थशास्त्र से संबंधित कार्य संस्कृत भाषा में क्यों नहीं हो रहे हैं। संस्कृत भाषा की प्राचीनता पर चर्चा करने मात्र से उसका उद्धार नहीं होगा। हमें संस्कृत भाषा बोलने के लाभों को जन-जन तक पहुंचाना होगा। जब तक संस्कृत का व्यवहार में प्रयोग नहीं होगा, तब तक कोई भी विश्वस्तरीय शोध कार्य संभव नहीं है।

चूँकि भाषा सीखने की उम्र कम होती है, लेकिन आज बहुत कम उम्र में ही युवाओं की बहुत सारी ऊर्जा संस्कृत भाषा या अंग्रेजी और दूसरी भाषाएँ सीखने में खर्च हो रही है। नए-नए तरीके सोचने, आविष्कार करने की उम्र 20-25 साल होती है। जो आजकल सिर्फ़ डिग्री लेने या नई भाषा सीखने में ही खर्च हो रही है।

संस्कृत भाषा मातृभाषा होगी तो संस्कृत के माध्यम से चिंतन करने से नए आविष्कार करने की क्षमता भी प्राप्त होगी। हमें संस्कृत, संस्कृति, विरासत, विज्ञान और विकास के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ना होगा। आपने कहा कि विरासत संस्कृत ग्रंथों और पुराणों में समाहित है। संस्कृत के ज्ञान के बिना विरासत को संरक्षित नहीं किया जा सकता।

मुख्य अतिथि प्रो. राम सुमेर यादव ने संस्कृत को विशिष्ट चिंतन की भाषा बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा भाषा विज्ञान का मूल है। संस्कृत अध्यात्म की भाषा है। संस्कृत शांति की भाषा है। संस्कृत ज्ञान और विज्ञान का भण्डार है, जिसकी महानता को देश-विदेश के महान विद्वानों ने समय-समय पर स्वीकार किया है।

संस्कृत में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है। संस्कृत में शोध को अब व्यावहारिक समस्याओं के समाधान से जोड़ना होगा। संस्कृत भाषा को अन्य विषयों से जोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है। यह एक व्यावहारिक समस्या है कि जो संस्कृत जानता है, वह आधुनिक विज्ञान और तकनीक से परिचित नहीं है और जो आधुनिक विज्ञान और तकनीक जानता है, वह संस्कृत से अपरिचित है।

निकट भविष्य में भारत को महान बनाने के लिए हमें अपने बीच ही इस समस्या का समाधान खोजना होगा। इसके अभाव में संस्कृत को सर्वमान्य भाषा बनाना बहुत कठिन कार्य है। इसलिए आज आवश्यकता है कि हम इस संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत महोत्सव का आयोजन करें तथा अपने जीवन में संस्कृत को अपनाने का दृढ़ संकल्प लें।

हमें संस्कृत सुननी चाहिए, संस्कृत पढ़नी चाहिए और संस्कृत बोलनी भी चाहिए। आज संस्कृत सुनना और पढ़ना वास्तविक जीवन से लुप्त होता जा रहा है, जिसके कारण संस्कृत भाषा एक विषय बन गई है। जिस भाषा में सार्वजनिक संवाद नहीं होता, वह भाषा अपमानित हो जाती है।

उद्घाटन समारोह की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और वैदिक एवं लौकिक मंगलाचरण से हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग के समन्वयक डॉ. अभिमन्यु सिंह ने समारोह में आए अतिथियों का मौखिक स्वागत किया। उन्होंने प्रख्यात विद्वानों का स्वागत करते हुए कहा कि संस्कृत महोत्सव अपने आत्मगौरव को पुनः प्राप्त करने का एक अवसर है। संस्कृत महोत्सव जैसे आयोजनों के माध्यम से हम प्राचीन भारत में आयोजित विभिन्न वसंतोत्सव आदि के वैभव को याद कर सकते हैं।

वास्तव में ऐसे आयोजन भारत के प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृत से परिचित कराने वाले सिद्ध होंगे। उद्घाटन समारोह का मुख्य भाषण देते हुए डॉ. सत्यकेतु ने संस्कृत महोत्सव के आयोजन के उद्देश्य एवं विषयों की जानकारी दी।

डॉ. ऋचा पांडे ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यक्रम में संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ की छात्रा श्रद्धा, कविता, सृष्टि एवं हर्षित ने भी अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अशोक कुमार शतपथी ने किया।

इस अवसर पर संस्कृत विभाग एवं ज्योतिष विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अनिल कुमार पोरवाल, डॉ. विष्णुकांत शुक्ला, डॉ. अनुज कुमार शुक्ला तथा संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ. अशोक कुमार शतपथी, डॉ. गौरव सिंह, डॉ. ऋचा पांडेय सहित अनेक शिक्षकगण एवं 100 से अधिक विद्यार्थी भी उपस्थित थे।

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