लखनऊ के भांड : अपनी हरकतों अदाओं हाजिर जवाबी बेतकल्लुफी से महफिल को वाह वाह करने को मजबूर कर देते थे
नवाबी काल एवं उसके बाद के दौर में लखनऊ के शादी विवाह जलसो एवं दूसरी महफिलों में मर्दों के मनोरंजन के लिए बाकायदा महफ़िलें सजती थी। उसमें तबायफो के नाच के साथ.साथ भांड के हंसमुख हरकतों एवं बेतकल्लुफी के नमूने प्रस्तुत किए जाते थे।
नवाबी काल एवं उसके बाद के दौर में लखनऊ के शादी विवाह जलसो एवं दूसरी महफिलों में मर्दों के मनोरंजन के लिए बाकायदा महफ़िलें सजती थी। उसमें तबायफो के नाच के साथ.साथ भांड के हंसमुख हरकतों एवं बेतकल्लुफी के नमूने प्रस्तुत किए जाते थे। भांड के गिरोह की एक विशेषता होती थी कि वह आयोजक के सामने उसकी नकल व उसका मजाक बनाया करते थे इसी तरह आयोजक महफिल में आने वाले मेहमानों की कमियां एवं खासियत के बारे में बता कर उनको बीच महफिल में शर्मसार होने पर मजबूर कर देते थे। यह थी भांडो की खासियत।
इतिहासकार बताते हैं कि जब दिल्ली उजड़ी तब भांडों ने बरेली होते हुए लखनऊ की ओर अपना रुख किया वह दौर था लखनऊ नवाबी काल का उस समय लखनऊ में अक्सर महफिले जलसे मुशायरा आयोजित करना रईस लोगों की शान समझा जाता था उन्हीं महफिलों में भांडो के प्रोग्राम रखे जाते थे। भांडो का एक पूरा गिरोह होता था जिनमें 5 6 कलाकार हुआ करते थे उसका एक उस्ताद होता था और दो चार उसके शार्गिद होते थे उनमें से कोई एक दो लोग वाद्य यंत्र बजाया करते थे जैसे हरमोनियम व तबला ढोलक। वह सभी चमकीला अचकन व पैजामा पहनते थे और टोपी लगाए रहते थे गिरोह का मुखिया खड़े होकर बेसुरा गया करता था और उसमें कटाक्ष एवं समाज की कमियों को भी बेनकाब किया जाता था।
जिस पर उसके शागिर्द वाह.वाह करते थे भांडो की चाल ढाल एवं तौर तरीके बिल्कुल जनाने होते थे कई बार तो भांडो के गिरोह में एक भांड जनाने कपड़े पहनकर शामिल रहता था। वह अपनी अदाओं से दर्शकों को लुभाता था भांडो के बारे में यह मशहूर था कि जिस पत्तल में खाते थे उसी में छेद करते थे अर्थात् जो आयोजक इन्हें बुलाते थे उन्हीं आयोजक की कमियां भरी महफिल में बता कर उन्हें शर्मसार करते थे।
वैसे भांडों का कुछ लोग खुफिया गिरी के तौर पर भी इस्तेमाल करते थे जिससे दुश्मनों के राज का पर्दाफाश कर सके भांडों की अदाकारी से मुंबई दुनिया के फिल्मी कलाकार भी प्रभावित रहे हैं जैसे जॉनी वॉकर आगाह राकेश बेदी व जॉनी लीवर वैसे एक दो पिक्चरों में गोविंदा ने भी भांडों से प्रभावित एक्टिंग की है
लखनऊ में भांड कला 50.60 वर्ष पूर्व तक थी यहां तक की डालीगंज के पास मोहन मेकिंग रोड पर भांडो का एक मोहल्ला हुआ करता था जिसे भांडो मोहल्ला कहते थे यह मोहल्ला आज भी है लेकिन भांड अब नहीं रहे
कहां तो तय था चिरागा हर एक धर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
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अखिल सावंत
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