जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ध्रुवस्वामिनी का सफल मंचन
नई दिल्ली। दिल्ली के प्रसिद्ध ऑडिटोरियम श्रीराम सेंटर में भारत के कालजयी नाटककार जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ध्रुवस्वामिनी का सफल मंचन बाबू शिवजी राय फाउंडेशन, नई दिल्ली के बैनर से किया गया। चर्चित रंग निर्देशक कुमार वीर भूषण की परिकल्पना और उत्पल झा के निर्देशन में हुए इस मंचन को देखने के लिए बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे। इस ऐतिहासिक नाटक में प्राचीन गुप्त वंश के सम्राट रामगुप्त द्वारा युद्ध नहीं लड़कर संधि में अपनी विवाहता ध्रुवस्वामिनी को शक प्रदेश के राजा शकराज के शिविर में संबंध बनाने के लिए भेज दिया जाता है।
ध्रुवस्वामिनी शिविर में अपने पति के छोटे भाई युवराज चंद्रगुप्त के साथ जाती है और दोनों मिल शकराज का वध कर अपनी अस्मिता बचाती और शक प्रदेश की रानी भी बन जाती है। कायर और क्लीक रामगुप्त शक प्रदेश में भी राज्य के लालच में पहुंचता लेकिन उसको मौत ही मिलती है और ध्रुवस्वामिनी की दूसरी शादी चंद्रगुप्त से हो जाती है। पुनर्विवाह और स्त्री के सम्मान की आवाज़ ही नाटक का केंद्र था। नाटक के मंचन में ध्रुवस्वामिनी -रूणी मिश्रा का अभिनय स्वाभाविक और असरदार था।
रामगुप्त -सतेन्द्र बगासी, चंदगूप्त - सत्यम कुमार झा, मंदाकिनी - सोनम वर्मा, शिखर स्वामी - शाहिल सिद्दीकी और खड्गधारणी- मंजू दहाल ने अपने अपने चरित्रों के साथ खूब जमें। खलनायक शकराज की भूमिका में कुमार सचिन, कोमा- शवाश्वती सहारिया, पुरोहित - शिवम् यादव ने चरित्रों की बारीकियों को पकड़ कर अभिनय किया। दर्शकों को हिजड़ा दीपक गुप्ता, कुबड़ा भाग्येश कौशिक, प्रतिहारी शिव शम्भू, दासी मीनू राठी, सैनिक मंशा शर्मा , खींगल शाहान अहमद और शक सामंत दीपक सिद्धार्थ, नवनीत कुमार बहुत पसंद आए।
नाटक की सफलता में सह निर्देशक अतुल ढिंगरा, उत्पल झा की प्रकाश परिकल्पना, दीपक चौरसिया का संगीत, अर्चना कुमारी का मुख सज्जा, सुजीत कुमार तथा शिवम झा का सेट और गीतांजलि चोपड़ा का मंच संचालन ने बड़ी भूमिका निभाई।
नाटक का उद्घाटन लेखक शाहनवाज अहमद कादरी, कंचन मेहरा सेंटर फॉर आर्ट के निदेशक कंचन मेहरा, लेखिका आरती स्मित, सोल संबंध की निर्देशिका दिशा मित्तल, रिज़वान रज़ा ने संयुक्त रूप से किया। कलाकारों को लोक बंधु राजनारायण के लोग ट्रस्ट के रिज़वान रज़ा, सोल संबध की निदेशका दिशा मित्तल, ललित कला के प्रशिक्षक दिलीप शर्मा, कला समीक्षक सुमन कुमार सिंह, साहित्यकार पंकज चौधरी ने किया।
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