गंधर्वपुरी में तीर्थंकरों की दो विशाल प्रतिमाएं मिलीं

गंधर्वपुरी के संग्रहालय परिसर में तीर्थंकरों की दो विशाल प्रतिमाएं हैं, इनमें से एक प्रतिमा माताजी के मंदिर के पीछे एक टूटे-फूटे मकान में जमीन में दबी खड़ी थी।

जुलाई 18, 2024 - 16:12
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गंधर्वपुरी में तीर्थंकरों की दो विशाल प्रतिमाएं मिलीं
गंधर्वपुरी में तीर्थंकरों की दो विशाल प्रतिमाएं मिलीं

इन्दौर। जब इसे बाहर निकाला गया तो यह बहुत बड़ा निकला और इसके साथ ही इसके दोनों ओर चमरेन्द्र की मूर्तियाँ भी मिलीं। कुछ लोग इसे शांतिनाथ तो कुछ महावीर की मूर्ति कहते हैं।

तीर्थंकर ऋषभनाथ की विशाल प्रतिमा, जिसमें उनके साथ गणपति भी हैं - यह प्रतिमा संग्रहालय में कायोत्सर्ग मुद्रा में जमीन पर लेटी हुई है। यह प्रतिमा गणपति सहित लगभग 15-16 फीट ऊंची है।

वर्तमान में यह संग्रहालय परिसर में प्रवेश करते ही बाईं ओर बाड़े में सीधी पड़ी कच्ची जमीन पर रखी हुई है। इसका आसन और छत की छतरी, माला धारक आदि टूटे हुए हैं जो इस चट्टान के साथ नहीं हैं। भूरे बलुआ पत्थर से बनी यह प्रतिमा बहुत सुंदर है।

इस प्रतिमा के चारों ओर आसन के समानांतर दोनों ओर कायोत्सर्गासन में यक्षी की प्रतिमाएं हैं। दाहिनी ओर ललितासन में बैठी यक्षी हैं।

पत्थर के क्षरण के कारण इसकी नक्काशी बहुत स्पष्ट नहीं है, तथापि दाहिने पैर पर बैठा बालक, आम के फूल, पत्ते, फलों का गुच्छा आदि स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जिससे पता चलता है कि यह अम्बिका यक्षी की मूर्ति है।

मुख्य तीर्थंकर प्रतिमा के बाईं ओर यक्षी की प्रतिमा भी है, यह भी ललितासन में बैठी है। इस चतुर्भुजी देवी के ऊपरी दो हाथों में चक्र हैं, बाकी दो भुजाएँ टूटी हुई हैं। यह संभवतः चक्रेश्वरी यक्षी है।

विशाल प्रतिमा की छाती पर सुन्दर श्रीवत्स है, दोनों ओर कंधों के पास प्रभामंडल बना हुआ है, इसका शेष भाग भी संग्रहालय परिसर में सुरक्षित है। इस प्रतिमा के कंधों पर सुन्दर बाल लटकते हुए दर्शाए गए हैं, कंधों पर आगे की ओर लटकती हुई उनकी तीन लटें भी उत्कीर्ण हैं।

इससे स्पष्ट है कि यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ भगवान की है। पीठिका के पास चक्रेश्वरी यक्षी की प्रतिमा भी स्थापित करती है कि यह आदिनाथ की प्रतिमा है।

दूसरी विशाल प्रतिमा और विशाल प्रतिमाओं का समूह- स्थानीय संग्रहालय परिसर में ही कच्ची जमीन पर बलुआ पत्थर की एक विशाल प्रतिमा पड़ी है। इस कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा के चरण और आसन टूटे हुए और गायब हैं, साथ में कोई दल भी नहीं है, इसलिए यह निर्धारित नहीं किया जा सकता कि यह किस तीर्थंकर की प्रतिमा है। गायब भाग सहित इसकी ऊंचाई लगभग 17-18 फीट रही होगी।

यह साढ़े चार फीट चौड़ी है। यहां परिसर में एक विशाल प्रभामंडल का बचा हुआ हिस्सा है, इसकी नक्काशी और आकार इस प्रतिमा के टूटे हुए अवशेष प्रभामंडल से मेल खाता है। इस प्रभामंडल के ऊपर त्रिछत्रावली है और उसके ऊपर दुंदुभिवादक, संगीतमंडल और गगनचर हैं, जो सभी टूटे हुए हैं, वे इसका हिस्सा हैं।

सुन्दर नक्काशी के माध्यम से उन्हें आभूषणों से सजाया गया है। पैरों और कलाइयों में पायल, सुन्दर अधोवस्त्र, कमर-सूत्र, भूतबंध, बाजूबंद, वनमाला, यज्ञोपवीत, कंठहार, हार, वक्ष-कुण्डल, कर्णफूल, मुकुट आदि आभूषणों से उन्हें सजाया गया है।

विशाल वितान भाग- वितान का अर्थ है कंधों के ऊपर मूर्ति के घेरे की नक्काशी। यह वितान भाग भी एक विशाल मूर्ति का है। इसमें तीन सुंदर छत्र खुदे हुए हैं, दोनों ओर अभिषेक-गजलक्ष्मी सवार हाथी हैं, त्रिछत्र वादक पर मृदंग वादक है, उसके दोनों ओर मालाधारी देवता खुदे हुए हैं तथा दुन्दुभि वादक के ऊपर के स्थान में एक देवता की कमल-आसीन स्थिति में एक छोटी जिन प्रतिमा खुदी हुई है।

पद्पीठा- परिसर में ही यहाँ परकोटा के सहारे एक बड़ा पादपीठ रखा है, उसके ऊपर एक लघु प्रतिमा रखी है। यह पादपीठ भी इन्हीं दो बड़ी प्रतिमाओं में से एक का संभव है। इस पादपीठ में मध्य में धर्मचक्र है, उसके दोनांे ओर सामने की ओर अग्रसित एक-एक गज है, उनके उपरान्त दोनों ओर एक-एक सिंह बैठा हुआ उत्कीर्णित है, तदोपरान्त दायें ओर यक्ष तथा बायें तरफ यक्षी है। दोनों चतुर्भुज हैं।

यक्ष का मुख गाय के समान होने से यह प्रथम तीर्थंकर का यक्ष गोमुख प्रतीत होता है। बीच-बीच में स्तंभ उत्कीर्णित होने से सभी पादपीठस्थों की स्वतंत्र देवकुलिकाएँ हो गई हैं।

विश्लेषण- 1- दोनों मूर्तियाँ बहुत सुन्दर हैं। बड़ी मूर्तियों के दल के चँवरधारी (अनुयायी) को अलग-अलग पत्थरों में बनाकर उनके साथ स्थापित करने की परम्परा रही है। परिसर में मिले दो बड़े चँवरधारी (अनुयायी) संभवतः मिली हुई दो मूर्तियों में से ही एक के हैं।

तीर्थंकर ऋषभनाथ-प्रतिमा के साथ आदिनाथ की यक्ष-यक्षी नहीं, बल्कि उनकी यक्षी चक्रेश्वरी ही उत्कीर्ण की गई है। दाहिनी ओर तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी अंबिका का चित्रण है, जो अपने बच्चे को गोद में लिए हुए हैं।

अंबिका और चक्रेश्वरी ही ऐसी यक्षियां हैं जिनकी स्वतंत्र मूर्तियां बड़ी संख्या में बनाई गईं और उन्हें स्वतंत्र देवियों के रूप में पूजा गया।

गंधर्वपुरी में ही चक्रेश्वरी यक्षी की 20 भुजाओं वाली सुन्दर मूर्ति उपलब्ध है तथा इस संग्रहालय में चक्रेश्वरी यक्षी की पांच स्वतंत्र सुन्दर मूर्तियाँ उनके दल सहित सुरक्षित हैं।

अतः अम्बिका यक्षिणी की प्रसिद्धि के कारण ही उसे तीर्थंकर ऋषभनाथ की विशाल प्रतिमा के साथ स्थान दिया गया होगा।

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